Tuesday, September 26, 2023

“मायावती के साथ गठबंधन की राह अब खत्म! जानिए उन्होंने राजनीतिक दलों के साथ किया गठजोड़, जिनके रिश्ते ज्यादा दिनों तक नहीं चले।”

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मायावती ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ चर्चा में वापसी की खबर लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर चर्चा में हैं। मंगलवार को मीडिया के सामने आकर, बसपा सुप्रीमो मायावती ने बयान दिया है कि वह किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगी। एनडीए के खिलाफ विपक्ष ने ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्ल्युसिव एलायंस’ (इंडिया) नामक गठबंधन का गठन किया है। इसके गठन के कुछ दिन बाद ही बसपा प्रमुख ने यह बयान दिया है।

बसपा के गठबंधन इतिहास के आधार पर यह देखा गया है कि यह गठबंधन अब तक सफल नहीं रहा है। इसने उत्तर प्रदेश में सपा, कांग्रेस और बीजेपी के साथ गठबंधन किया और सत्ता में आई, लेकिन इन गठबंधनों के रिश्ते ज्यादा दिनों तक चलने में सफल नहीं हुए।

पहली बार सपा के साथ गठबंधन किया था गया था वर्ष 1993 में, जब राममंदिर विवाद के दौरान भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने हाथ मिलाया था। यह गठबंधन भाजपा को उत्तर प्रदेश से सफाया करने में सफल रहा था, लेकिन इसके बाद यह गठबंधन टूट गया। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे भी दो साल बाद ही अपने गठबंधन से अलग हो गए।

साल 1996 में विधानसभा चुनाव के बाद बसपा ने कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया, लेकिन गठबंधन के चमत्कारी नहीं रहे। इसके बाद बसपा ने कांग्रेस का साथ छोड़कर 1997 में भाजपा के साथ सरकार बनाई, लेकिन छह महीने के बाद यह गठबंधन भी टूट गया।

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीएसपी का सूपड़ा साफ हो गया था, क्योंकि पार्टी के किसी भी सांसद को जीत नहीं मिली। इसके बाद 2019 में फिर बसपा ने गठबंधन की राह पकड़ी और लोकसभा चुनाव में बीएसपी, समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी। इस गठबंधन का सबसे बड़ा फायदा बसपा को मिला, जबकि सपा और आरएलडी को कोई सियासी लाभ

नहीं मिला। लोकसभा में बसपा जीरो से 10 सांसद वाली पार्टी बन गई। समाजवादी पार्टी पांच सीटों पर सिमट गई जबकि आरएलडी के अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चौधरी भी जीत नहीं सके।

बीएसपी ने वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन यह गठबंधन भी धराशाई रह गया था।

एक प्रमुख मत बसपा के बारे में यह है कि इसे दलित आंदोलन की उपज माना जाता है। विशाल तिवारी, एक वरिष्ठ पत्रकार, का मानना है कि बसपा के नेतृत्व में शुरू हुआ ‘बामसेफ’ आज भी मायावती के नेतृत्व में ‘बसपा’ नामक पार्टी अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। उनके मुताबिक, इस पार्टी का सबसे बड़ा चुनावी चुनौती यह है कि विभिन्न दलित जातियों के अलावा भी गठबंधन के साथ उनका गहरा संबंध होता है। इसके अलावा, बसपा को व्यक्तिगत स्तर पर भी आगे बढ़ने में मुश्किलें होती हैं। इस संदर्भ में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण भी यही आरोप लगाते हैं। इसके अतिरिक्त, इस पार्टी की बड़ी चुनौती यह भी है कि वह भाजपा के साथ कुछ दिनों से गठबंधन की कल्पना कर रही है, जिससे इस गठबंधन के बनाए जाने की संभावना है।

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